<no title>कश्यप ऋषि की भूमि कश्मीर पूर्व की भांति पूरा होगा

 


कश्यप ऋषि की भूमि कश्मीर पूर्व की भांति पूरा होगा


 


 एस .शंकर अनुरागी



  • सन 1947 के पहले भारत एक विशाल राष्ट्र हुआ करता था, इसके पहले पाकिस्तान और भारत एक ही राष्ट्र थे पाकिस्तान का  उदय भी नहीं हुआ था तब से कश्मीर भारत के पास ही था कश्मीर विश्व के प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में से एक स्थान है, जम्मू कश्मीर भारत देश का  मणिमुकुट है जो भारत माता के भाल को सुशोभित करता हुआ दिखाई देता है ।आजादी से पूर्व के भारत में आज का वर्तमान पाकिस्तान भी शामिल था, बंटवारे के पूर्व पाकिस्तान के राज्यों में अकूत धन संपदा विद्यमान थी। जम्मू-कश्मीर की प्राकृतिक सुंदरता आज भी विश्व प्रसिद्ध है ,,जिसके कारण भारत विश्व में अपनी अलग प्रकार की समृद्ध वाली धाक बनाए हुए रखता था। खैबर पख्तूनख्वा की जनाना सुंदरता इतनी खूबसूरत है कि दुनिया भर में कहीं भी इसका शानी नहीं दिखाई देता । माता हिंगलाज देवी, ढाकेश्वरी देवी ,और कामराज का मंदिर आदि भारत विभाजन के पूर्व हमारे गौरव के प्रतीक हुआ करते थे ,लेकिन यह सभी देवस्थान अब हमारे पास नहीं है ,।जो हिस्सा आज पाकिस्तान और बांग्लादेश के पास है उसके लिए आजादी से पूर्व बहुत सारे क्रांतिकारियों ने आजादी की लड़ाई लड़ी थी जो हंसते-हंसते फांसी पर झूल गए ,।सिख पंथ के संस्थापक गुरु नानक देव जी का भी जन्म स्थान पाकिस्तान के रावलपिंडी जिले में ही हुआ था जिसे ननकाना भी कहा जाता है, अपने जीवन के अंतिम दिनों को नानक देव ने जहां बिताया वह सिख समाज का पवित्र स्थान "करतारपुर "आज भी पाकिस्तान में ही स्थित है ,जिसको भारत और पाक सरकार ने अभी कुछ महीने पहले "करतारपुर कॉरिडोर "बनाने का निर्णय किया है ।आजादी के दीवाने  और" इंकलाब जिंदाबाद "के नारे को गुंजायमान करने वाले अमर शहीद" भगत सिंह" का जन्म लाहौर के "लायलपुर" में ही हुआ था, ऐतिहासिक राजा"पुरूष का पेशावर आज भी अपने हृदय में भारतवंशियों के पुरुषार्थ को समेटे हुए हैं ।महाराजा रणजीत सिंह का शासन संपूर्ण पाकिस्तान के राज्यों पर हुआ करता था खैबर के दर्रे से होने वाले विदेशी आक्रमणों का सामना महाराजा की सेना के सैनिक करते थे ।सिंधु ,मुल्तान ,पंजाब ,बलूचिस्तान में महाराजा रणजीत सिंह का ही शासन हुआ करता था ,अफगान का मुस्लिम लुटेरा "अहमद शाह अब्दाली "जब सिंध प्रांत पर आक्रमण करके कब्जा कर लिया ,तब महाराजा रणजीत सिंह की सेना ने उसे मारकर अफगानिस्तान तक खदेड़ दिया और फिर से सिंध प्रांत पर अपना अधिकार कर लिया था ।जिन स्थानों और राज्यों के लिए हमारे लाखों सैनिक पीढ़ियों से शहीद होते रहे आज वही ऐतिहासिक स्थल हमारे पास नहीं है।


यह हमारे देश का दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है कि बीसवीं सदी के नासमझ राजनेताओं के छोटी सी सोच ने हमेशा के लिए हमारी भावी पीढ़ियों का दरवाजा बंद कर दिया। बंटवारे की बे बुनियादी आधार को ही उन्होंने अपना हक मान लिया ।उन्होंने कभी भी यह विचार नहीं किया कि जो हिस्सा बंटवारे की बलि चढ़ा रहा है ,उसका पौराणिक, आध्यात्मिक ,सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक महत्व क्या है ? वहां के भूगर्भ में कितनी खनिज संपदा है? हमारे लिए वह स्थान सामरिक दृष्टि से कितना महत्व का है? इन सब का थोड़ा भी विचार न कर पाना और बंटवारे के विनाश लीला को मौन स्वीकृति प्रदान करना,  यह स्वार्थ के वशीभूत हो सकता है नहीं तो फिर कोई षड्यंत्र का हिस्सा। देश विभाजन को मान लेना , हो सकता है तत्कालीन नेताओं की यह समझ रही हो कि इससे शांति बहाल हो जाएगी ,लेकिन इसका दुखद परिणाम इतना भयानक रहा कि भारत वर्तमान समय में भी उस कष्ट को उसी प्रकार से झेल रहा है। जिस शांति की उम्मीद और आशा की कल्पना से हमारे राजनेताओं ने मातृभूमि के दो -तीन टुकड़े कर दिए ,वह आज तक शांति स्थापित नहीं कर पाए ।भारत ,पाकिस्तान और बांग्लादेश का हिंदू समाज आज भी उसी मजहबी आतंक से पीड़ित है ,हमारे धार्मिक स्थानों को क्षत-विक्षत कर दिया गया हमारी सांस्कृतिक पहचान वाले मान बिंदुओं को समाप्त करने की हर संभव कोशिश की गई ,हिंदू समाज के जनमानस के साथ आए दिन बलात्कार और मतांतरण की घटनाएं घटित होती रहती है ,लेकिन विगत 72 वर्षों के शासन में काबीज बंटवारे के मूल दोषी, हमेशा शांति के सफेद कबूतर उड़ाते रहे, निजी स्वार्थ की आकांक्षा में लिप्त मत विघटन का भय उनको इस प्रकार से सताता रहा कि सांप्रदायिक तत्वों को उन्होंने हमेशा ही नजरअंदाज किया , और अधूरी धर्मनिरपेक्षता को समाज के सामने परोसते रहे ।भारतीय सरहद के पार से लेकर सीमा के अंदर तक बंटवारे के समय से ही इनके सहभागी नेताओं (मोहम्मद अली जिन्ना )जो इन्हीं के पैरोकार थे, एक रक्तरंजित पटकथा लिखते रहे और हमारे भाग्य निर्माता उसको मनाने के लिए 19 दिनों तक( गांधी) उसके घर में डले रहे लेकिन नतीजा बेअसर रहा और लौट के बुद्धू घर को आए की कहावत चरितार्थ हुई ।

जब 14 अगस्त 1947 की मध्यरात्रि को देश का बंटवारा स्वीकार कर लिहुगया था ,तब यह जम्मू- कश्मीर का विवाद कैसे उत्पन्न हो गया ,वह कौन सी मजबूरियां थी ,यह कौन सी चूक हुई ,कि बंटवारे के 72 वर्षों बाद तक जम्मू -कश्मीर में केशर की क्यारियां बारूद के जल से सिंचित होती रही,। इस समस्या के मूल जनक वर्तमान समाज जानना चाहता है, पाकिस्तान का हिस्सा पाकिस्तान के और भारत का हिस्सा भारत के पास था तब पाक अधिकृत कश्मीर, आजाद कश्मीर ,गुलाम कश्मीर का विवाद कैसे उत्पन्न हो गया, देश के गृह मंत्री सरदार पटेल ने भारत के अर्ध सहस्र देशी रियासतों का विलय करा लिया, जिसमें महाराजा हरि सिंह जी ने भी संपूर्ण जम्मू- कश्मीर का  विलय भारत में किया था तब पाक अधिकृत कश्मीर मुद्दा कैसे पैदा हो गया? पाकिस्तानी हमलावरों ने तो संपूर्ण जम्मू -कश्मीर पर हमला किया था, जिसको भारतीय सेना ने मार कर खदेड़ दिया था ,जब सेना पाक अधिकृत कश्मीर को अपने कब्जे में लेने की तैयारी कर रही थी तभी नेहरू जी ने संघर्ष विराम की घोषणा किसके इशारे पर कर दिया । नेहरू जी तो विदेशी धरती पर थे, क्या वायसराय माउंटबेटन ,माइकल वेवल या मोहम्मद अली जिन्ना का दबाव था ।कि वह जम्मू-कश्मीर की आधी धरती से सैनिकों को वापस बुलाने का। दबाव तत्कालीन गृह मंत्री पर बनाया और शेख अब्दुल्ला को अधूरे जम्मू -कश्मीर राज्य का मुख्यमंत्री बनाकर राज्य को विशेषाधिकार प्रदान कर दिया ,जो पूरे देश को आस्तीन का सांप बन कर डंसता  रहा ।कश्मीर के अलावा भारत के पूर्वोत्तर राज्य  सिक्किम-मेघालय-नागालैंड-त्रिपुरा आदि  राज्य तो  इससे भी बुरी स्थिति में थे फिर उनको विशेष राज्य का अधिकार क्यों नहीं दिया गया? इसके अलावा नेहरू सरकार के सभी सांसदों ने  रावी नदी के तट पर हाथ में जल लेकर संकल्प लिया था कि हम एक-एक इंच जमीन पाकिस्तान से वापस लेकर रहेंगे, तब से लेकर आज तक कांग्रेस की केंद्र सरकार ने पाक अधिकृत कश्मीर के लिए क्या किया?यह प्रश्न तो सामान्य जन के मन में भी आता ही होगा।

 पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय "इंदिरा गांधी" के कार्यकाल में भारत-पाक युद्ध के समय में एक अवसरआया था ,जब जनरल मानक ना के नेतृत्व में 93 हजार सैनिकों को  बंदी बनाया गया था  तब तथाकथित पाक अधिकृत आजाद जम्मू कश्मीर को वापस लिया जा सकता था, लेकिन उस समय भी कांग्रेसी सरकार ने जम्मू -कश्मीर राज्य के विवादित मामले में किसी भी प्रकार की दिलचस्पी नहीं दिखाई, अब ऐसे अवसर को गंवा देना राज्य के लिए अनदेखी करना ही तो है, इसको भारत की जनता क्या समझे? सरकार के संकल्प लेने के बावजूद भी कुछ ना करना क्या साजिश या षड्यंत्र का हिस्सा नहीं मानना चाहिए? आप स्वयं विचार करें।

 आज जब  वर्तमान सरकार देश की जनता के अनुरूप संपूर्ण जम्मू कश्मीर को लेकर दृढ़ संकल्पित है और बरसों पुरानी कोढ को जड़ से समाप्त करने की इच्छा रखती है तो उसी परिवार के परपोते राहुल गांधी जी कबाब में हड्डी का काम करने लगते हैं, भाजपा नीत मोदी सरकार ने जब राज्य के विशेषाधिकार को समाप्त कर दिया तो भारतीय कांग्रेस के नेता पाक के नेताओं से ज्यादा बेचैन होने लगे और पाक समर्थित बयानबाजी करने लगे। जिस बीमारी का अमिट कलंक कांग्रेस के पूर्वजों ने भारत के भाल पर लगाया था उस कलंक के धूल जाने से कांग्रेसी आए दिन मीडिया के सामने विधवा विलाप करते रहते हैं ।नेहरू जी के समय से अब तक जम्मू -कश्मीर पर चुप रहना कांग्रेस केनिजी स्वार्थ एवं किसी गहरी साजिश को उजागर करता है   जो देश की जनता को अब समझ में आ चुका है।

पाकिस्तान या भारत के पाक समर्थित राजनीतिक दलों को यह बात साफ तौर पर समझ लेना चाहिए कि जिस मोदी सरकार के "56" इंच सीना की बात वह करते थे उसी" 56" इंच के कलेजे ने विशेष राज्य का दर्जा जम्मू- कश्मीर से हमेशा-हमेशा के लिए समाप्त कर दिया है और सरकार की इच्छाशक्ति को संपूर्ण देश ने सलाम किया है ।आज देश की जनता को मोदी सरकार पर पूरा भरोसा है, जनता यह मानने लगी है कि "मोदी है तो मुमकिन है "जनता तो अब सरकार से यह उम्मीद किए बैठी है कि पाक अधिकृतजम्मू- कश्मीर (पीओके) और अक्साई चीन का हजारों वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र कब भारत में जुड़ेगा और हमारी कश्यप ऋषि की भूमि कश्मीर पूर्व की भांति पूरा होग ,जहां फिर से सूफी संत भी अपनी सूफियाना अंदाज को कश्मीरियत की आबो हवा में घोलेंगे और हिंदू- मुस्लिम एकता की बात करेंगे ।जिससे भारत का मणि मुकुट अपने वैभव को प्राप्त करेगा।