<no title>आज से " मूक माटी " वेबसाइट संस्करण प्रारंभ

आज से " मूक माटी " वेबसाइट संस्करण प्रारंभ



 


" मूक माटी " महाकाव्य का सृजन जीवन मूल्यों को प्रतिष्ठित करने वाला महाकाव्य है । माटी से जुड़ कर लिखकर माटी का कर्ज चुकाने  का कार्य महापुरुष, साधकों, संत कवियों के क्रम में संत कवि दिगम्बर ,जैनाचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने किया है ।
     आचार्य श्री ने  " मूक माटी " में साहित्य-बोध को अनेक आयामों में अंकित किया है___


आना, जाना, लगा हुआ है
आना यानी जनन-उत्पाद है,
जाना यानी मरण-व्यय है
लगा हुआ यानी स्थिर-ध्रौव्य है
और
हैं यानी चिर-सत्
यही सत्य है, यही सत्य___


सत्य यह भी है  आज वही क्षण है जब परम पूज्य गुरुदेव की अनुपम, आशीष कृति " मूक माटी " नाम  मात्र से ही मेरा जीवन , कण से पर्वत होने को उत्सुक है‌।  परम पूज्य संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के नाम स्मरण पूज्य दर्शन और चरनामृत पान से ही अद्भूत उर्जा संचारित हो उठी है । 
     मैं  " मूक माटी " मासिक समाचार पत्र  को  पूज्य गुरुदेव को समर्पित कर चुका, मेरा पूर्व जन्म का भाग्य है कि जिस " मूक माटी " महाकाव्य का सृजन पूज्य गुरुदेव ने किया उस नाम के समाचार पत्र का संपादन करने का सौभाग्य मुझे मिला । 
       आज से " मूक माटी " वेबसाइट संस्करण प्रारंभहो रहा है । अपने पाठकों और गुरुदेव के शिष्यों से आग्रह है । आप अहिंसक आंदोलन के लिए मासिक " मूक माटी " से जुड़ सकते हैं । अपने लेख, रचनाएं इस पते पर भेजें- 
mookmaati2010@gmail.com
Mob-9584815781